भोपाल: ‘मैं देखता हूं’ कविता में शंख घोष ने लिखा था—
“आँखें हरा चाहती हैं,
शरीर चाहता है हरा बाग़,
पेड़ लाओ, बाग में लगाओ,
मैं देखता हूं।”
लेकिन सवाल यह है कि क्या हम सच में पर्यावरण के प्रति सचेत हैं? दुनिया भर में पर्यावरण बचाने के लिए जब लगातार सम्मेलन हो रहे हैं और विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन को लेकर चेतावनी दे रहे हैं, उसी समय मध्य प्रदेश की एक घटना ने पर्यावरण जागरूकता को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
सड़क विस्तार के लिए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में लगभग 8,000 पेड़ काटे जा रहे हैं। नेशनल हाईवे डेवलपमेंट अथॉरिटी (एनएचडीए) भोपाल के अयोध्या बाइपास के विस्तार का काम कर रही है। वर्तमान में यह दो-तरफा बाइपास चार लेन का है। विस्तार के बाद दोनों ओर दो-दो सर्विस लेन जोड़कर इसे कुल 10 लेन का बनाया जाएगा। इस परियोजना के लिए करीब 8,000 पेड़ काटे जाएंगे।
एनएचडीए की इस जानकारी के सामने आते ही पर्यावरणविदों और पर्यावरण प्रेमियों में आक्रोश फैल गया है। उनका सवाल है, क्या विकास के नाम पर हर बार पेड़ों को ही काटना ज़रूरी है? उनका कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर पेड़ काटे बिना भी सड़क विस्तार के वैकल्पिक उपाय खोजे जाने चाहिए।
यह मामला नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) तक भी पहुंचा है। एनजीटी ने बताया कि पहले इस परियोजना के लिए 10,000 पेड़ काटने का प्रस्ताव था, जिसे बाद में संशोधित कर 7,871 पेड़ कर दिया गया। यह जानकारी एनएचडीए ने दी है। साथ ही यह भी कहा गया है कि काटे गए हर एक पेड़ के बदले 10 पौधे लगाए जाएंगे। एनएचडीए का दावा है कि यह सिर्फ कागज़ी वादा नहीं होगा बल्कि वास्तव में पौधारोपण हो रहा है या नहीं, इस पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी। हालांकि पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि पेड़ काटने के बाद केवल पौधारोपण ही एकमात्र समाधान नहीं है। एक पौधे को पेड़ बनने में कई साल लग जाते हैं। इस दौरान इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का नकारात्मक प्रभाव पर्यावरण पर पड़ेगा और मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा।