बाबरी मस्जिद बरसी पर राजनीति की नई पटकथा-अयोध्या में शांति, बंगाल में उबाल

BJP ने मनाया ‘शौर्य दिवस’, बंगाल में ‘बाबरी मस्जिद’ का शिलान्यास

By श्वेता सिंह

Dec 06, 2025 23:18 IST

समाचार एई समयः '6 दिसंबर' भारतीय राजनीति की वह तारीख है जो तीन दशक बाद भी न तो फीकी पड़ती है और न ही अपनी तीक्ष्णता खोती है। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की बरसी पर इस वर्ष भी घटनाक्रम ने साफ कर दिया कि यह मुद्दा केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान की राजनीति का ‘सक्रिय ईंधन’ है। हम देख रहे हैं कि एक ओर अयोध्या में अभूतपूर्व शांति और प्रशासनिक सख्ती है, वहीं बंगाल में ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखे जाने के मुद्दे ने चुनावी ध्रुवीकरण की परतें और मोटी कर दी हैं।

BJP का सांस्कृतिक नैरेटिव बनाम AIMIM का संवैधानिक आक्षेप

भाजपा द्वारा बाबरी मस्जिद ढहाने की बरसी को 'शौर्य दिवस' के तौर पर मनाना केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि पार्टी के सांस्कृतिक-राजनीतिक एजेंडे का व्यवस्थित विस्तार है। योगी आदित्यनाथ का बयान - “कलंक मिटा, विरासत लौटी”। यह संकेत देता है कि पार्टी अब इस इतिहास को ‘संस्कृति की वापसी’ के रूप में स्थापित करने की कोशिश में है। इसके ठीक विपरीत, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का कहना कि “मस्जिद शहीद हुई और संविधान कमजोर हुआ”। यह दोनों समुदायों के बीच स्मृति-राजनीति के टकराव को फिर उजागर करता है। यह वैचारिक भिड़ंत केवल राजनीतिक दलों तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक मनोविज्ञान को भी प्रभावित करती है।

अयोध्या का मौन बहुत कुछ कहता है

इस बार अयोध्या में न नारों की आवाज थी, न विरोध का शोर। प्रशासनिक सख्ती के बीच शहर ने एक असामान्य शांति ओढ़ ली। सवाल यह भी है कि जहां राम मंदिर लगभग पूर्ण हो चुका है, वहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई मस्जिद की 5 एकड़ जमीन अब भी खाली क्यों है? ADA द्वारा योजना को अस्वीकृत किया जाना और लगातार देरी यह संकेत देती है कि मंदिर–मस्जिद विमर्श में अब भी असंतुलन है। मस्जिद निर्माण शुरू होने में संभावित तारीख 2026 सामने आना इस संतुलन को और धीमा करता है।

बंगाल में ‘बाबरी मस्जिद’ के मुद्दे पर राजनीति गरमाई

मुर्शिदाबाद में निलंबित TMC विधायक हुमायूं कबीर द्वारा ‘बाबरी मस्जिद’ का शिलान्यास, वह भी चार लाख भीड़ के दावे के साथ, सीधे-सीधे सांप्रदायिक भावनाओं को स्पर्श करता है। यह कदम चुनावी बंगाल में मुस्लिम राजनीति की नई दिशा का संकेत भी देता है-जहां भावनात्मक प्रतीकों के माध्यम से पहचान की राजनीति को तीखा किया जा रहा है। इसका पलटवार बीजेपी ने ‘शौर्य यात्रा’ और राम मंदिर शिलान्यास के जरिए किया जिसने ध्रुवीकरण को दो तरफा बना दिया।

शुभेंदु अधिकारी का बयान - “मुगल-पठान राजनीति का बीज बो दिया गया”-यह बताता है कि भाजपा इस कदम को बंगाल चुनाव के प्रमुख मुद्दे में बदलने की तैयारी में है।तृणमूल कांग्रेस ने कबीर को “BJP का एजेंट” बताकर दूरी बनाई, लेकिन मुस्लिम वोट-बैंक के दबाव को देखते हुए वह सीधे विरोध भी नहीं कर सकी। कांग्रेस ने दोनों दलों पर सामाजिक तनाव बढ़ाने का आरोप लगाया, लेकिन उसकी अपील अब राजनीतिक प्रभाव खो चुकी प्रतीत होती है।

धार्मिक प्रतीक अब भी राजनीति के सबसे प्रभावी हथियार

आज की राजनीति में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि धार्मिक मुद्दे-विशेषकर राम और बाबरी से जुड़े-अब भी सबसे गहरे भावनात्मक प्रभाव डालते हैं। अयोध्या शांत है, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति शांत नहीं -उत्तर प्रदेश की स्थिरता के विपरीत, बंगाल जैसे राज्यों में यह मुद्दा नए उबाल ला रहा है। चुनावी ध्रुवीकरण का चक्र और तेज हो गया है। दोनों समुदायों में पहचान आधारित राजनीति को मजबूती मिल रही है। आने वाले चुनाव में राजनीतिक पार्टियां इसका लाभ उठाने की तैयारी में है।

बाबरी मस्जिद का लाल धागा अभी टूटा नहीं-राजनीति इसे फिर बुन रही है

6 दिसंबर 1992 इतिहास का हिस्सा है, लेकिन 6 दिसंबर 2025 यह दर्शाता है कि यह इतिहास आज भी देश की राजनीति को गढ़ रहा है। अयोध्या का मौन, बंगाल का उबाल, और राष्ट्रीय दलों की बयानबाज़ी-ये सब संकेत हैं कि बाबरी का प्रतीक आज भी चुनावी राजनीति का सबसे प्रभावी और भावनात्मक कार्ड बना हुआ है।

राजनीतिक मौसम चाहे बदल जाए, पर बाबरी-एक मुद्दा नहीं, एक स्थायी राजनीतिक प्रतीक बन चुका है।

Prev Article
आसमान छूते किराए पर लगी रोक, केंद्र ने तय की टिकटों की कीमत
Next Article
नाइट क्लब में आग लगने की घटना में गोवा के मुख्यमंत्री की चेतावनी, कहा - कोई सरकारी अधिकारी दोषी हुआ तो...

Articles you may like: